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शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

चुनाव जीतने और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पर बढ़त बनाने के लिए लेने लगे हैं पीआर कंपनियों का सहारा

- अतुल मालिकराम

इन्दौर : इन दिनों कंपनियों के बीच आपसी होड़ बढ़ी है। अपने हर प्रोडक्ट को बेहतरीन बताने की मार्केटिंग बनाई जा रही है। अपने हर प्रोडक्ट के लिए विज्ञापन तो दिया नहीं जा सकता, इसलिए रणनीति के तौर पर पब्लिक रिलेशन कंपनियों (पीआर) का महत्व बढ रहा है। उद्योग संगठन 'एसोचैम' के अनुमान के मुताबिक भारत में पब्लिक रिलेशन का बिजनेस सालाना 32 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। 2008 में इस उद्योग का सालाना कारोबार 300 करोड़ डॉलर था, जो आज हज़ार करोड़ डॉलर तक पहुंच गया है। इसके पीछे तर्क यही है कि आर्थिक तेजी के इस दौर में ज्यादातर कंपनियां बिक्री और कारोबार बढ़ाने के लिए 'पब्लिक रिलेशन' पर ज्यादा भरोसा कर रही है। लेकिन, 'ऐसोचैम' को चिंता ये है कि तेजी से बढ़ते इस कारोबार के लिए पारंगत लोग मिलेंगे कहाँ से?

कम्पनी ने सोशल मीडिया पर दिखाया कमाल

अब इन पीआर कंपनियों का उपयोग सियासी कामकाज के लिए भी होने लगा है। चुनाव जीतने और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पर बढ़त बनाने के लिए कई राजनीतिक पार्टियां और नेता पीआर कंपनियों का सहारा लेने लगे हैं। अब नेताओं और कार्यकर्ताओं का जन-संपर्क अभियान और पब्लिक की नब्ज़ पकड़ने का काम भी पीआर कंपनियों को दिया जाने लगा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पीआर कंपनियों के माध्यम से खुलकर चुनाव अभियान चला था। इन कंपनियों ने सोशल मीडिया पर अपना कमाल दिखाया और नरेंद्र मोदी को अच्छी खासी बढ़त मिली! प्रतिद्वंदी के इस कदम का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी की टीम ने भी ऐसी ही एक कंपनी की सेवाएं ली! वह कंपनी सोशल अपने क्लाइंट का शेयर और लाइक बढ़ाती है।

पार्टी की छवि चमकाने की जिम्मेदारी भी इन कंपनियों के कंधों पर होती है

अगले चुनाव में हर पार्टी पीआर कंपनियों की मदद लेने की तैयारी में है। पार्टी के नेता स्वीकार भी करते हैं कि पार्टी के दफ्तर में दो-चार घंटे रोज देने और रणनीति बनाने में कोई समय नहीं देना चाहता! इसलिए पीआर कंपनियों की मदद लेना मजबूरी है। नारे तैयार करने, पार्टी  और नेता के संबंध में प्रचार सामग्री तैयार कराने से लेकर पार्टी की छवि चमकाने की जिम्मेदारी भी इन कंपनियों के कंधों पर होती है। पार्टी नेताओं को उनकी योजना के तहत ही चलना पड़ता है।

राजनीतिक पार्टियाँ भी पीआर कंपनियों की सेवाएं लेने से नहीं हिचकती

चुनाव में पीआर कंपनियों के असर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ भी पीआर कंपनियों की सेवाएं लेने से नहीं हिचकती। राजनीतिक पार्टियों के लिए काम करने वाली पीआर कंपनियों का होमवर्क चुनाव के काफी पहले से शुरू हो जाता है। इनका सबसे पहला काम प्रत्याशी की इमेज बिल्डिंग करना होता है। पीआर कंपनी जनता के बीच प्रत्याशी की पॉजिटिव इमेज बनाती हैं। प्रत्याशी की इमेज बिल्डिंग के साथ कंपनी अलग-अलग कैंपेन चलाकर मतदाताओं के दिल-ओ-दिमाग पर छाप छोड़ने का काम करती हैं।

भाषण के कंटेंट से लेकर बॉडी लैंग्वेज तक पर रेकॉर्डिंग देखकर किया जाता है काम

पब्लिक रिलेशन और डिजिटल मार्केटिंग के इस दौर में पीआर कंपनियों ने चुनाव को पूरी तरह से प्लांड और मैनेज्ड बना दिया है। चुनाव की हर छोटी-बड़ी जरूरत को ये पीआर कंपनियां अपने तरीके से निपटाती हैं। ये कंपनियां डिजिटल कैंपेन, सोशल मीडिया प्रमोशन और ईमेल एंड एसएमएस मार्केटिंग के जरिए कैंडिडेट के लिए माहौल तैयार करने का काम करती हैं। डिजिटल कैंपेन के तहत कैंडिडेट के भाषणों को लाइव प्रसारित और रेकॉर्ड करके ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जाता है। भाषण के कंटेंट से लेकर बॉडी लैंग्वेज तक पर रेकॉर्डिंग देखकर काम किया जाता है। इसके अलाव ईमेल और एसएमएस के जरिए लगातार और ज्यादा से ज्यादा लोगों से संपर्क बनाने की कोशिश की जाती है। चुनाव के दौरान वोटर्स तक अपनी बात पहुंचाने और विरोधी दल पर हमला करने का सबसे बड़ा साधन भाषण होता है। पीआर कंपनियां नेताओं के भाषण अपनी स्ट्रैटजी के मुताबिक तय करवाती हैं।
(लेखक  "अतुल मालिकराम" 1999 से बिल्डिंग रेपुटेशन, पीआर और डिजिटल कम्युनिकेशन कंपनी के निदेशक और राजनीतिक विश्लेषक हैं) 

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