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सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

‘निधि के लिए तरसती निधि’


वेट लिफ्टिंग के क्षेत्र में नित नये कीर्तिमान स्थापित करने वाली 21 वर्षीया ग्रामीण बाला निधि सिंह पटेल का तो यही कहना है कि प्रदेश एवं केन्द्र सरकार के पास उसकी सहायता करने के लिए एक रूपया भी नहीं है। यदि स्थानीय जे0पी0 सीमेन्ट फैक्ट्री और शहर के कुछ गणमान्य उसकी मददगार न होते तो उसकी प्रतिभा कब की गुमनामियों के अंधेरे में दम तोड़ चुकी होती।
इंग्लैण्ड की राजधानी लंदन में 15 से 19 दिसम्बर तक आयोजित कामनवेल्थ पावर लिफ्टिंग प्रतियोगिता में भारतीय टीम की महिला वर्ग में उ0प्र0 के मीरजापुर जनपद के चुनार थानान्र्तगत पचेवरा गांव निवासी मध्यम वर्गीय गिरिजा शंकर सिंह पटेल की 21 वर्षीय बेटी एम0ए0 की छात्रा निधि सिंह पटेल अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित 5 दिवसीय इस प्रतियोगिता में भाग लेकर एक-एक कर कुल पाँच स्वर्ण पदक अपने नाम कर एक कीर्तिमान स्थापित किया। पाँच गोल्ड मेडल के साथ गुरूवार 22 दिसम्बर, 2011 को निधि जब अपने शहर मीरजापुर लौटी तो एक ओर जहाँ उसके मुख मण्डल पर पदक जीतने की खुशी थी वहीं सरकार द्वारा हो रही उपेक्षा उसे अन्दर से पीड़ा पहुँचा रही थी।
युवा वेट लिफ्टिर निधि सिंह पटेल महज 30 माह के अपने खेल कैरियर में जो मुकान हासिल किया वह उसकी लगन और कड़ी मेहनत का ही परिणाम है। वैसे निधि पटेल अपनी इस सफलता का श्रेय अपने कोच कमलापति त्रिपाठी को देती है जिनके कुशल दिशा-निर्देशन में सुबह-शाम के कठिन अभ्यास ने उसे इस मुकाम तक पहुँचाया। तीसरी बार देश से बाहर लंदन में आयोजित बेंच प्रेस एवं कामनवेल्थ पावर लिफ्टिंग प्रतियोगिता में भाग लेकर निधि ने अपनी प्रतिभा की जो धाक जमाई उससे मीरजापुर जनपद ही नहीं बल्कि पूरा पूर्वांचालवासी अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहा है।
उत्तर-प्रदेश समेत देश के दूसरे राज्यों में आयोजित पावर लिफ्टिंग प्रतियोगिता में जहाँ कहीं भी निधि को भाग लेने का अवसर मिला वहाँ उसने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए कोई न कोई पदक जरूर हासिल किया। ऐसे लगभग दो दर्जन से अधिक पदक और प्रशस्ति पत्र तथा गोल्ड व रजत मेडल अपने नाम कर चुकी निधि को उस समय अपार खुशी मिली जब पहली बार देश से बाहर फिलीपींस की राजधानी मनीला में 14 अगस्त, 2010 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय बंेच प्रेस चैंपियनशिप प्रतियोगिता में भाग लेकर 52 किलो भार वर्ग में 70 किलो वजन उठाकर रजत पदक हासिल कर शहर लौटी तो जगह-जगह निधि के स्वागत में सम्मान समारोह का आयोजन हुआ।

निधि की मनीला यात्रा चंदे द्वारा जुटाई गयी रकम की बदौलत संभव हुई। मनीला जाकर प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए निधि को पौनें दो लाख रूपये की आवश्यकता थी। पिता की माली हालत काफी जर्जर है, 6 सदस्यीय परिवार में निधि को दोनों वक्त का भरपेट खाना खिला देते है यही बहुत था। कोच कमलापति त्रिपाठी ने निधि का हौसला बढ़ाया और कहा कि भले ही उनको इसके लिए लोगों से चंदा माँगना पड़े, मांगेंगे परन्तु निधि को मनीला जरूर भेजेंगे। यही किया भी, लगभग एक दर्जन गणमान्य लोगों और समाजसेवियों से चंदा मांगकर लगभग 2 लाख रूपये की धनराशि इकठ्ठा की जिसमें सबसे बड़ी धनराशि एक लाख रूपये स्थानीय चुनार सीमेन्ट फैक्ट्री की ओर से मिला और 30 हजार रूपये जिले के स्वजातीय सपा सांसद बाल कुमार पटेल ने दिया। परन्तु तमाम प्रयासों के बावजूद जिला प्रशासन स्तर एवं प्रदेश सरकार से निधि को एक रूपये की भी सहायता राशि नहीं मिली।
मनीला से विजयी होकर लौटने के बाद उसकी काफी परेशानियों का हल हो गया। निधि को प्रोत्साहित करने के लिए चुनार सीमेण्ट फैक्ट्री ने उसे गोद ले लिया और एलान किया कि निधि के खान-पान (फिटनेश) के लिए कम्पनी की ओर से प्रतिमाह उसे 10 हजार रूपये दिये जायेंगे तथा 15 हजार रूपये प्रतिमाह उसके खाते में कम्पनी जमा करेगी। यह रकम निधि को बाहर जाकर खेलने के समय काम आयेगी। मनीला से लौटने के बाद प्रदेश एवं देश स्तर पर आयोजित वेट लिफ्टिंग प्रतियोगिताओं में भाग लेकर निधि ने अपनी काबलियत को बरकरार रखा और तमाम मेडलों के साथ ’स्ट्रांग वुमेन आफ इण्डिया’ का खिताब भी अपने नाम किया। दूसरी बार देश से बाहर चीन के ताइवान शहर में आयोजित 6 दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय पावर लिफ्टिंग बेंच प्रेस प्रतियोगिता में निधि को भाग लेने का मौका मिला। इस प्रतियोगिता में पूरे भारत से 22 पुरूष और 15 महिला वेट लिफ्टिरों ने भाग लिया, जिसमें उत्तर प्रदेश से एकमात्र निधि पटेल की भागीदारी रही। विपरीत परिस्थितियों में भी निधि 13 अगस्त, 2011 को 57 किलोभार वर्ग में 77 किलो वजन उठाकर कांस्यपदक पर कब्जा जमाया।
ताइवान से लौटने के बाद भी निधि का जलवा बरकरार रहा और उसका चयन दिसम्बर, 2011 में लंदन में आयोजित कामनवेल्थ पावर लिफ्टिंग प्रतियोगिता के लिए हो गया। निधि दिल्ली से 13 दिसम्बर को लंदन के लिए उड़ान भरी और वहाँ पहुँचकर एक-एक कर 5 स्वर्ण पदक अपनी झोली में डाले। लंदन में रिकार्ड बनाने के बाद निधि पटेल 22 दिसम्बर, 2011 को अपने शहर मीरजापुर लौटी तब हमारे संवाददाता ने निधि से बात की तो उसके दिल की पीड़ा जुबान पर आ ही गयी। उसने बताया कि उसका परिवार बेहद गरीब है आज भी वह खपरैल के कच्चे मकान में रहती है। पहली बार मनीला, दूसरी बार ताइवान और तीसरी बार लंदन में आयोजित प्रतियोगिता में भाग लेकर प्रदेश एवं देश का गौरव बढ़ाया। तीनों बार उसके सामने आर्थिक समस्यायें राह रोककर खड़ी हो गयी। ऐसे में चुनार जे0पी0 सीमेन्ट फैक्ट्री ने उसकी भरपूर मदद की इसके अलावा दूसरों से भी मदद मांगनी पड़ी। लंदन जाने के लिए उसे दो लाख रूपयों की जरूरत थी। एक लाख की सहायता सीमेन्ट फैक्ट्री के वाइस प्रेसीडेंट बिग्र्रेडियर आर0आर0 बाली ने तुरन्त उपलब्ध करा दी। चालीस हजार की मदद भाजपा विधान मण्डल दल के नेता चुनार के स्थानीय विधायक ओम प्रकाश सिंह के पुत्र अनुराग सिंह ने दिया। इसके बावजूद उसे लगभग 40 हजार की कमी पड़ रही थी जिसके लिए कोच श्री त्रिपाठी के साथ वह स्वयं मीरजापुर जिलाधिकारी श्रीमती संयुक्ता समद्दार से मिलकर बात की तो आश्वासन भी मिला कि मदद की जायेगी परन्तु ऐन मौके पर प्रशासन ने अपने हाथ खड़े कर दिये।

निधि को इस बात का भी मलाल है कि विदेशों में जहाँ कहीं भी खेलने के लिए पहुँची वहाँ उसके प्रतिद्वन्दी प्रतिभागियों की परेशानियों और दिक्कतों को दूर करने के लिए उनके राष्ट्र के विदेशी दूतावास से सम्बद्ध कोई न कोई अधिकारी प्रतियोगिता स्थल पर जरूर मौजूद दिखा, पर उसके साथ ऐसा कभी नहीं हुआ कि कोई अधिकारी वहाँ रहा हो और मेरी किसी परेशानी को समझा हो। दोनों बार की तरह लंदन में भी मेरे सामने कई विषम परिस्थितियाँ आयी, पहला लंदन का तापमान शून्य से नीचे था दूसरा शाकाहारी भोजन ठीक ढंग से नहीं मिल रहा था। विदित हो निधि शुरू से शाकाहारी है इसके बावजूद उसने मांसाहारी वेट लिफ्टिंरों के समक्ष दूध-घी की धाक जमा दी। तीनों बार पदक जीतकर जब वह विदेश से वापस मीरजापुर रेलवे स्टेशन पर कदम रखे तो उसके स्वागत में जहाँ सैकड़ों की भीड़ मौजूद थी वहीं पर प्रशासनिक स्तर पर कभी कोई छोटा सा अधिकारी भी मौजूद नहीं रहा।
बीते 14 नवम्बर को दिल्ली स्थित मेजर ध्यानचन्द स्टेडियम में आयोजित खिलाडि़यों के एक सम्मान समारोह में केन्द्रीय खेल मंत्री अजय माकन ने वर्ष 2009 से 2011 तक अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेकर स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाडि़यों एवं और उनके कोचो को नकद पुरस्कार देकर सम्मानित किया। इस सम्मान समारोह में 8 करोड़ रूपये की राशि 130 खिलाडि़यों और 132 कोचों के बीच में बाँटा गया। एक ओर जहाँ इतनी बड़ी संख्या में खिलाडि़यों को नकद पुरस्कार दिया गया वहीं निधि के लिए सरकारी स्तर पर अभी तक एक रूपये की भी मदद न मिलना समझ से परे है। एक महिला मुख्यमंत्री के राज में एक महिला खिलाड़ी वह भी गवई परिवेश में पली-बढ़ी वेट लिफ्टर निधि पटेल की ऐसी उपेक्षा समझ से परे है।


रविवार, 24 फ़रवरी 2013

नहीं सताता अब लड़कियों को कुंवारापन खोने का डर


‘आपरेशन से प्राप्त कर रही अपना खोया कौमार्य’

आधुनिक पाश्चात्य सभ्यता ने हमारे रहन-सहन, खान-पान, सोच-विचार और व्यवहार के तौर-तरीकों में अपना प्रभाव डाला ही है। हमारी अनेक मान्यताओं को भी पूरी तरह से तहस-नहस (दरकिनार) करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा है। हमारे देश की लड़कियाँ शादी से पहले अपने कौमार्य को सहेजकर रखती थी और उनका कुंवारापन (हाईमन झिल्ली) सुहागरात वाले दिन ही उनके पति द्वारा समाप्त होता था, लेकिन आज हालात कुछ और है। आधुनिकता और फिल्मी ग्लैमर की चकाचौंध के चलते अनेक महानगरों और मेट्रोंसिटी की लड़कियों के लिए अपना कुंवारापन बचाये रखना बीते दिनों की बात हो गयी है। लड़कियों का खुलापन और स्वच्छन्द जीवन जीने की शैली के चलते उनका कुंवारापन कब कैसे समाप्त या नष्ट हो जाता है, खुद उन्हें ही इसकी फिक्र नही रहती। विदेशों में रहने वाली लड़कियां अपने कुंवारेपन को एक आपरेशन द्वारा फिर से प्राप्त कर रही हैं। विदेशों की देखा-देखी हमारे देश में भी यह चलन आज तेजी से अपना पैर पसार रहा है।
आगरा की 24 वर्षीया स्वीटी एक प्राइवेट कम्पनी में रिसेप्सनिष्ट के पद पर कार्यरत थी। यद्यपि उसके परिवार में किसी चीज की कमी नही थी। लेकिन स्वीटी की सोच थी वह स्वयं कुछ करें इसीलिए उसने रिसेप्सनिष्ट बनना स्वीकार किया था। स्वच्छन्द विचारों वाली स्वीटी के आफिस के ही एक युवक से जिस्मानी सम्बन्ध बन गये। कई महीनों तक स्वीटी आफिस के अपने ब्याय फ्रेन्ड के साथ मौज-मजा लेती रही, एक साल बाद उसके मा-बाप ने बेटी स्वीटी के लिए योग्य वर देखकर उसकी शादी तय कर दी। स्वीटी ने शादी का विरोध नहीं किया लेकिन उसे यह डर सताने लगा कि यदि शादी के बाद उसके पति को उसके विवाह पूर्व सम्बन्धों अर्थात् कुंवारेपन के नष्ट होने का शक हो गया तो हो सकता है उसका वैवाहिक जीवन नारकीय न बन जाय। स्वीटी इसी उधेड़बुन में पड़़ी थी उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था तभी एक दिन उसे उदास देख उसकी सहेली गुंजा ने स्वीटी से उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने गुंजा से सारी बाते बता दी। स्वीटी की समस्या सुनकर गुंजा ने उसे ‘हाइम्नोप्लास्टी सर्जरी’ के द्वारा फिर से अपना कुंवारापन पाने का तरीका (सुझा) दिया। गुंजा ने स्वीटी के सामने इस राज को भी खोल दिया कि कभी स्वयं उसने इसी आपरेशन के द्वारा अपना कुंवारापन प्राप्त किया था।
कानपुर की गुंजा एम0बी0ए0 करके एक मल्टीनेशनल कम्पनी में काम पा यगी थी, शिक्षा के दौरान उसके सहपाठी अमित से उसके अंन्तरंग सम्बन्ध बन गये परिणाम स्वरूप गुंजा का कौमार्य समाप्त हो गया और वह गर्भवती हो गयी। गुंजा ने प्रेमी अमित से यह बात बतायी तो उसने अपने कैरियर का वास्ता देकर पहले तो उसका गर्भपात करवा दिया इसके बाद एक बहाने से वह गुंजा के जीवन से काफी दूर चला गया। कुछ दिन तो गुंजा असहज रही लेकिन बाद में उसने एक दूसरी मल्टीनेशनल कम्पनी में पुनः जाँब शुरू कर दिया। इसी कम्पनी में कार्यरत एक सहकर्मी ने जब गुंजा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो गुंजा ना नहीं कर सकीं, लेकिन उसे डर सताने लगा कि यदि उसके होने वाले पति को शादी से पूर्व उसकी कौमार्यता के नष्ट होने का अंदेशा हो गया तो हो सकता है, उसका वैवाहिक जीवन बर्बाद न हो जाय। आखिर एक समाचार पत्र में प्रकाशित एक विज्ञापन के जरिये उसने अपनी ‘हाइम्नोप्लास्टी सर्जरी’ करवा कर इस डर से छुटकारा पा लिया और फिर से अक्षत कौमार्यवती बन गयी। इस आपरेशन में एक घंटे से भी कम का समय लगा और आपरेशन वाले दिन ही घर वापस भी आ गयी। बाद में गुंजा अपने पति के साथ आगरा शिप्ट हो गयी।

लखनऊ की अंकिता एक बड़े घर की विवाहिता युवती और एक बच्चे की माँ है उसके पति ने बच्चे के जन्म के बाद से अंकिता में दिलचस्पी लेना कम कर दिया। अंकिता ने अपने पति से जब इस बेरूखेपन का कारण जानना चाहा तो अंकिता को मालुम हुआ अब उसमें पहले वाली बात नहीं रही, पहले उसके जिस्म में एक कसाव था, लेकिन बच्चे के जन्म के बाद उसका अंग विशेष ढीला पड़ गया था और पति को उसके इसी ढीलेपन के कारण आनन्द नहीं मिलता। अंकिता ने दिल्ली में रहने वाली भाभी को अपनी समस्या बतायी तो भाभी ने दिल्ली आकर अंकिता को ‘हाइम्नोप्लास्टी सर्जरी’ कराने की सलाह दी। अंकिता तीन दिन के लिये दिल्ली गयी और आपरेशन के द्वारा अपने अंग विशेष का ढीलापन ठीक करवा ली। अब उसका वैवाहिक जीवन सुखमय से बीत रहा है।
आँपरेशन के द्वारा कौमार्य खो चुकी लड़कियों का अपना कुंवारापन फिर से प्राप्त करने की शुरूआत लगभग सात वर्ष पूर्व विदेशों में तेजी से शुरू हुई थी। विदेशी लड़कियां और महिलाएं इस आँपरेशन के द्वारा न सिर्फ अपना खोया हुआ कौमार्य पुनः हासिल कर रही थी बल्कि अपने शरीर के दूसरे शिथिल पड़ गये अंग विशेष को भी आपरेशन के द्वारा पहले वाली स्थिति को प्राप्त कर लिया करती।
दरअसल इस प्रकार के आपरेशन द्वारा वहाँ की कई महिलाएं अपने कौमार्य को पहले वाली स्थिति मंन ले आती। लगभग 30 मिनट तक चलने वाले इस आँपरेशन के द्वारा लड़कियों का कौमार्य पहले की तरह हो जाता है। विदशों में उस समय खासतौर से मुस्लिम लड़कियां इसे कराने में आगे रही हैं। पेरिस के डाक्टर मार्क एबेकैसिस उन दिनों हर सप्ताह इस तरह के दो से चार आँपरेशन करने की बात बतायी। डाक्टर एबेकैसिस के अनुसार इस प्रकार के आँपरेशन में लगभग तीने हजार डालर (भारतीय मूल्य के अनुसार सवा लाख से डेढ़ के बीच) का खर्च आता है। इस आँपरेशन में किसी भी कारण से नष्ट हो गई हाइमन (योनि झिल्ली) को फिर से पहले वाली स्थिति में कर दिया जाता है।
आज के जमाने की वो लड़कियां जो किसी कारण से अपना कौमार्य गवाँ चुकी है और उन्हें इस बात का डर सताता है कि शादी के बाद उनके भावी पति को यदि किसी प्रकार का शक हो गया तो हो सकता है उनका वैवाहिक जीवन खतरे में पड़ जाय इसके लिए पैसे वाले घरों की लड़कियां इस सर्जरी के सहारे अपने डर को दूर भगा देती है। इस प्रकार का आपेरशन अनेक महानगरों कोलकाता, दिल्ली, मुम्बई, मद्रास, बंग्लौर, अहमदाबाद में होने की बात बतायी गयी। यहाँ इस प्रकार के आपरेशन में लगभग 75 हजार रूपये का खर्च आता है। यह आपरेशन एक प्रकार से कास्मेटिक टाइप की सर्जरी होती है बड़ी बात यह है कि इस सर्जरी का शरीर पर कोई दूष्प्रभाव नहीं पड़ता।
इस सर्जरी की लोकप्रियता का आलम यह है कि अभिजात्य वर्ग की कौमार्य खो चुकी अनेक अविवाहित युवतियों के अलावा कुछ शादीशुदा महिलायें भी शादी की वर्षगाँठ व वेलेन्टाइन डे जैसे मौकों पर यह सर्जरी करवाकर अपने हमसफर साथी के साथ नैसर्गिक सुख का आनन्द उठाने में पीछे नहीं रहती जो उन्हें सुहागरात वाले दिन मिला होता हैं।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसारा वर्तमान समय में अधिकांश परूषों की मनसिकता कुवाँरी युवती से ही विवाह करने व शारीरिक सम्बन्ध बनाने की होती है। शायद इसी कारण से कुवाँरापन खो चुकी युवतियों के लिये यह सर्जरी आज एक वरदान साबित हो रही है।
(प्रस्तुत रिपोर्ट में लड़कियों व शहर के नाम काल्पनिक है।)

रविवार, 17 फ़रवरी 2013

नर्सिग होम में ममता का सौदा!


पटना। मिलकियाना मोहल्ले के नि:संतान दंपती आरजू और फैयाज आलम बीते सोमवार को सोने की तैयारी कर रहे थे कि उन्हें घर के बाहर नवजात के रोने की आवाज सुनाई दी। दरवाजा खोला तो चौखट पर कपड़ों में लिपटा सुंदर लाल अपनी भूख शांत करने को बिलख रहा था। आरजू की ममता छलक पड़ी, बच्चे को गोद में ले चुप कराते हुए वह पति के साथ आसपास उसके मां-बाप की घंटों खोज करती रही, पर सफलता नहीं मिली। थक हार खुदा की नेमत मान दोनों घर लाकर उसकी परवरिश में जुट गए। लेकिन ये क्या रविवार को निजी अस्पताल की नर्स रिजवाना उनके घर आई और बच्चे के एवज में दस हजार रुपए देने या फिर बच्चा वापस करने का दबाव बनाने लगी। शोरगुल के बाद मामला थाने जा पहुंचा है। पुलिस ने सनहा दर्ज कर इसे बच्चे की अवैध खरीद-फरोख्त का मामला मान जांच शुरू कर दी है। प्रारंभिक तफ्तीश में पुलिस को पता चला है कि निजी अस्पताल में एक बिन ब्याही मां ने इस कर्ण को जन्म दिया है। लोकलाज के डर से वह उसे अस्पताल में ही छोड़ गई। नर्स रिजवाना आरजू और फैयाज आलम के दुख से परिचित थी, पैसे की लालच में रात दस बजे वह बच्चे को को उनके घर की चौखट पर रख गई। चार-पंाच दिन में दोनों को जब बच्चे केप्रति अथाह स्नेह होते देख लिया तो आज दस हजार रुपए वसूलने पहुंच गई। नहीं देने पर किसी अन्य को 50 हजार रुपए में बेचने की धमकी भी दी। उससे मिन्नतें व रोने से काम नहीं बना तो नि:संतान दम्पती मामले को आसपास के लोगों तक ले गए। लोगों ने इसकी लिखित जानकारी थाने को दिलवा दी। थानाध्यक्ष एनके रजक ने बताया कि यह बच्चा चोरी का रैकेट भी हो सकता है। पुलिस की टीम बन गई है। उन नर्सिग होम की जांच होगी जहां गर्भपात, पैसे लेकर बिन ब्याही मां का प्रसव कराने के बाद बच्चे को बेचने का धंधा होता है। इस मामले में उन्होंने आरजू को बिना अनुमति किसी को बच्चा न देने की हिदायत के साथ देखभाल करने की जिम्मेदारी सौंपी है। नर्स रिजवाना से पूछताछ की जाएगी। किसे बेचना है।

बिन ब्याही मां का गर्भपात कराने वाले नर्सिग होम के कर्मचारियों व नर्सो के पास यह जानकारी रहती है कि उनके इलाके में कौन नि:संतान है? उसे ऐसी संतानें देकर ऊंची कीमत वसूली जाती है।
पहले भी हुआ था खुलासा
चिकित्सक भी बिन ब्याही मां का प्रसव करा नवजात शिशु का सौदा करवाते हैं। यही नहीं गर्भपात और लिंग जांच के बाद ये धड़ल्ले से गर्भपात करा रहे हैं। कुछ महीने पूर्व भी इसका खुलासा हुआ था जब एक बिन ब्याही मां के गर्भपात के लिए चिकित्सक ने डेढ़ लाख रुपए ले लिए थे। एक अन्य मामले में 16 वर्षीय लड़की की गर्भपात के दौरान जान जाते बची थी।

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

डायन के नाम पर मौत

वास्तविकता से दूर सरकार का कथन
जमशेदपुर के कमलपुर अंतर्गत गोपालपुर की विधवा महिला बेदुला कुंम्भकार की गांव के ही मितन एवं अन्य ने डायन होने का संदेह करते हुए पिटाई कर दी। किसी तरह अन्य ग्रामीणों के सहयोग से विधवा महिला बेदुला जान बच पाई। महिला के बयान पर पुलिस ने मितन एवं अन्य के खिलाफ डायन की संदेह में जान मारने की नीयत से हमला किए जाने का मामला दर्जकर जांच कर रही है। बिहार से अलग होकर गठित राज्य झारखण्ड में इस तरह के समाचार आए दिन अखबारों की सुर्खियां बने रहते हैं।

इक्सवीं सदी के भारत में आज जहां देशवासी दिन-प्रतिदिन नए आयाम छू रहे है, वहीं झारखण्ड आज भी कुरीतियों से जूझ रहा है। राज्य गठित हुए लगभग बारह साल से अधिक समय बीत गए हैं, लेकिन आज भी यहां डायन के नाम पर औरतों को प्रताडि़त किया जा रहा है। आकड़ों पर गौर करें तो 1991 से 2006 के बीच अकेले सिंहभूम में लगभग 177 महिलाएं डायन के आरोप में मौत के घाट उतारी जा चुकी हैं। जबकि पूरे प्रदेश में लगभग 917 महिलाएं मौत के घाट उतारी जा चुकी हैं।

मानवाधिकार आयोग ने कई बार झारखण्ड में व्याप्त इन कुरीतियों के प्रति अपनी गंभीरत दिखाते हुए इस संबंध में राज्य सरकार को निर्देश भी दिए, फिर भी लगता है कि यहां अंधविश्वास की जड़ंे इतनी गहरी हैं कि कानून लागू होने के बावजूद इस पर अंकुश नहीं लग पा रहा है।

गौर तलब है कि विगत 15 नवम्बर 2000 को झारखण्ड राज्य के गठन के साथ ही राज्य में डायन प्रथा प्रतिषेध धिनियम लागू कर दिया गया था। इस अधिनियम के अंतर्गत डायन का आरोप लगाने वाले पर अधिकतम तीन महीने की कैद या फिर एक हजार रूपए जुर्माने का प्रावधन है। किसी महिला को डायन बता प्रताडित करने पर छह महीने की कैद, दो हजार रूपए का जुर्माना या फिर दोनों की सजा का प्रावधन है।

हांलाकि प्रदेश सरकार के अनुसार यह कुरीति पूरी तरह से खत्म हो गई है, पर आकड़े दर्शाते है कि सरकार का यह कथन वास्तविकता से दूर है। 
1991 से 2006 के बीच डायन के नाम पर हुई मौतों का आकड़ा 
  • जिला     मृत्यु
  • रांची       203
  • सिंहभूमि     177
  • लोहरदगा    127
  • पलामू       060
  • धनबाद      006
  • सिमडेगा     035
  • कोडरमा     015
  • गिरीडीह     015
  • चतरा       010
  • साहेबगंज    004
  • देवघर      016
  • दुमका      011


अंधविश्वास का मकड़जाल


भूत भगाने के लिए अस्पताल में ही पूजा
इक्सवीं सदी के भारत में आज जहां देशवासी दिन-प्रतिदिन नए आयाम छू रहे है, वहीं झारखण्ड राज्य आज भी अंधविश्वास के गहरे मकड़जाल से नहीं निकल पा रहा है। राज्य गठित हुए लगभग आठ साल बीत गए हैं, लेकिन आज भी झारखण्ड का आदिवासी वर्ग हो या बुद्धजीवी वर्ग, जान सांसत में फंसी देख यह लोग हर जतन कर डालते हैं, फिर चाहे जगह अस्पताल ही क्यों न हो।

वैसे भी अंधविश्वास में जकड़े इस प्रदेश के आदिवासियों को इलाज से अध्कि झाड़-फूंक पर भरोसा होता है। इसका जीता-जागता उदाहरण 17 नवम्बर को जमशेदपुर के मसहूर हास्पिटल एमजीएम के इमरजेन्सी वार्ड के बेड नम्बर 8 पर देखने को मिला।

बेड नम्बर 8 पर भर्ती हरि मूल रूप से धलभूमगढ़ के नरसिंहगढ़ गांव का निवासी है। पेशे से ट्रक चालक हरि की शादी जमशेदपुर के एमजीएम थाना क्षेत्र के बड़ाबांकी गांव के निवासी बुधों सिंह की बेटी से लगभग दो वर्ष पहले हुई थी। उसका एक बच्चा भी है।

स समय जमशेदपुर में मलेरिया काबू से बाहर है। इसी मलेरिया के चपेट में हरि भी आ गया। इलाज में देर होने के कारण हरि की हालत बिगड़ती चली गयी। दामाद की बिगड़ती हालत देखकर बुधों सिंह ने उसे एमजीएम अस्पताल भर्ती करा दिया। फिलहाल हरि बेहोश था और उसकी स्थिति गंभीर बनी हुई थी। उसके साले मोटो सिंह र ससुर बुधों सिंह ही उसकी देखभाल कर रहे है। डाक्टर की कोई दवा कारगर नहीं हो पा रही थी।
दामाद की हालत सुधरता न देखकर बुधों सिंह को लगने लगा कि हो न हो हरि पर किसी भूत-प्रेत का साया तो नहीं पड़ गया है? आखिरकार कुछ सोच विचार के बाद उसने तंत्र-मंत्र का सहारा लेने का मन बनाकर अस्पताल में ही बड़ाबांकी से ओझा-गुनी को बुला लिया। ओझा ने अस्पताल में ही हरि पर से भूत भगाना शुरू कर दिया, जिसे देखने वालों की भीड़ जुट गई।

ओझा ने पहले कुछ सामानों की मदद से हरि के बेड के नीचे फर्श पर कुछ आकृति बनाई और उसमें अनाज के दाने भर दिए फिर उसने झोले से एक मुर्गा निकाला और उसे उन दानों को चुंगने का आदेश दिया। हालांकि सहमे मुर्गे ने कुछ नहीं खाया। फिर ओझा ने पूजा-पाठ के कई उपक्रम किए और अंत में सारे सामान समेटकर वहां बनाई आकृति मिटाकर चलता बना। जाते-जाते ओझा ने बुधों सिंह को बताया कि हरि पर भूत का जो साया था उसे उसने उतार दिया है।

अब हरि का भूत भागा या नहीं फिलहाल इस बारे में बुधों सिंह ही जाने पर अस्पताल प्रबंधन की ओर से भी इस पर कोई ऐतराज नहीं जताया गया था।

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

भुतहा खंडहर

भानगढ़ किले की रोचक दास्तान
भानगढ़, राजस्थान के अलवर जिले में सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के एक छोर पर है। यहाँ का किला बहुत प्रसिद्ध है जो 'भूतहा किला' माना जाता है। इस किले को आमेर के राजा भगवंत दास ने 1573 में बनवाया था। भगवंत दास के छोटे बेटे और मुगल शहंशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल मानसिंह के भाई माधो सिंह ने बाद में इसे अपनी रिहाइश बना लिया।
माधोसिंह के तीन बेटे थे- सुजाणसिंह, छत्रसिंह, तेजसिंह। माधोसिंह के बाद छत्रसिंह भानगढ़ का शासक हुआ। छत्रसिंह के बेटे अजबसिंह थे। यह भी शाही मनसबदार थे। अजबसिंह ने आपने नाम पर अजबगढ़ बसाया था। अजबसिंह के बेटे काबिलसिंह और इसका बेटा जसवंतसिंह अजबगढ़ में रहे। अजबसिंह का बेटा हरीसिंह भानगढ़ में रहा (वि. सं. १७२२ माघ वदी भानगढ़ की गद्दी पर बैठे)। माधोसिंह के दो वंशज (हरीसिंह के बेटे) औरंग़ज़ेब के समय में मुसलमान हो गये थे। उन्हें भानगढ़ दे दिया गया था। मुगलों के कमज़ोर पड़ने पर महाराजा सवाई जयसिंह जी ने इन्हें मारकर भानगढ़ पर कब्जा कर लिया।
भानगढ़ का किला चारदीवारी से घिरा है जिसके अंदर घुसते ही दाहिनी ओर कुछ हवेलियों के अवशेष दिखाई देते हैं। सामने बाजार है जिसमें सड़क के दोनों तरफ कतार में बनाई गई दोमंजिली दुकानों के खंडहर हैं। किले के आखिरी छोर पर दोहरे अहाते से घिरा तीन मंजिला महल है जिसकी ऊपरी मंजिल लगभग पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है।
अरावली की गोद में बिखरे भानगढ़ के खंडहरों को भले ही भूतों का डेरा मान लिया गया हो मगर सोलहवीं सदी के इस किले की घुमावदार गलियों में कभी जिंदगी मचला करती थी। किले के अंदर करीने से बनाए गए बाजार, खूबसूरत मंदिरों, भव्य महल और तवायफों के आलीशान कोठे के अवशेष राजावतों के वैभव का बयान करते हैं। लेकिन जहां घुंघरुओं की आवाज गूंजा करती थी वहां अब शाम ढलते ही एक रहस्यमय सन्नाटा छा जाता है। दिन में भी आसपास के गांवों के कुछेक लोग और इक्कादुक्का सैलानी ही इन खंडहरों में दिखाई देते हैं।
भानगढ़ में भूतों को किसी ने भी नहीं देखा। फिर भी इसकी गिनती देश के सबसे भुतहा इलाकों में की जाती है। इस किले के रातोंरात खंडहर में तब्दील हो जाने के बारे में कई कहानियां मशहूर हैं। इन किस्सों का फायदा कुछ बाबा किस्म के लोग उठा रहे हैं जिन्होंने खंडहरों को अपने कर्मकांड के अड्डे में तब्दील कर दिया है। इनसे इस ऐतिहासिक धरोहर को काफी नुकसान पहुंच रहा है मगर इन्हें रोकने वाला कोई नहीं है।
राजस्थान के अलवर जिले में सरिस्का नॅशनल पार्क के एक छोर पर है भानगढ़। इस किले को आमेर के राजा भगवंत दास ने 1573 में बनवाया था। भगवंत दास के छोटे बेटे और मुगल शहंशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल मानसिंह के भाई माधो सिंह ने बाद में इसे अपनी रिहाइश बना लिया।
चारदीवारी के अंदर कई अन्य इमारतों के खंडहर बिखरे पड़े हैं। इनमें से एक में तवायफें रहा करती थीं और इसे रंडियों के महल के नाम से जाना जाता है। किले के अंदर बने मंदिरों में गोपीनाथ, सोमेश्वर, मंगलादेवी और क्ेशव मंदिर प्रमुख हैं। सोमेश्वर मंदिर के बगल में एक बावली है जिसमें अब भी आसपास के गांवों के लोग नहाया करते हैं।
मौजूदा भानगढ़ एक शानदार अतीत की बरबादी की दुखद दास्तान है। किले के अंदर की इमारतों में से किसी की भी छत नहीं बची है। लेकिन हैरानी की बात है कि इसके मंदिर लगभग पूरी तरह सलामत हैं। इन मंदिरों की दीवारों और खंभों पर की गई नफीस नक्काशी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह समूचा किला कितना खूबसूरत और भव्य रहा होगा।
माधो सिंह के बाद उसका बेटा छतर सिंह भानगढ़ का राजा बना जिसकी 1630 में लड़ाई के मैदान में मौत हो गई। इसके साथ ही भानगढ़ की रौनक घटने लगी। छतर सिंह के बेटे अजब सिंह ने नजदीक में ही अजबगढ़ का किला बनवाया और वहीं रहने लगा। आमेर के राजा जयसिंह ने 1720 में भानगढ़ को जबरन अपने साम्राज्य में मिला लिया। इस समूचे इलाके में पानी की कमी तो थी ही 1783 के अकाल में यह किला पूरी तरह उजड़ गया।
भानगढ़ के बारे में जो किस्से सुने जाते हैं उनके मुताबिक इस इलाके में सिंघिया नाम का एक तांत्रिक रहता था। उसका दिल भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती पर आ गया जिसकी सुंदरता समूचे राजपुताना में बेजोड़ थी। एक दिन तांत्रिक ने राजकुमारी की एक दासी को बाजार में खुशबूदार तेल खरीदते देखा। सिंघिया ने तेल पर टोटका कर दिया ताकि राजकुमारी उसे लगाते ही तांत्रिक की ओर खिंची चली आए। लेकिन शीशी रत्नावती के हाथ से फिसल गई और सारा तेल एक बड़ी चट्टान पर गिर गया। अब चट्टान को ही तांत्रिक से प्रेम हो गया और वह सिंघिया की ओर लुढकने लगा।
चट्टान के नीचे कुचल कर मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि मंदिरों को छोड़ कर समूचा किला जमींदोज हो जाएगा और राजकुमारी समेत भानगढ़ के सभी बाशिंदे मारे जाएंगे। आसपास के गांवों के लोग मानते हैं कि सिंघिया के शाप की वजह से ही किले के अंदर की सभी इमारतें रातोंरात ध्वस्त हो गईं। उनका विशवास है कि रत्नावती और भानगढ़ के बाकी निवासियों की रूहें अब भी किले में भटकती हैं और रात के वक्त इन खंडहरों में जाने की जुर्रत करने वाला कभी वापस नहीं आता।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने सूरज ढलने के बाद और उसके उगने से पहले किले के अंदर घुसने पर पाबंदी लगा रखी है। दिन में भी इसके अंदर खामोशी पसरी रहती है। कई सैलानियों का कहना है कि खंडहरों के बीच से गुजरते हुए उन्हें अजीब सी बेचैनी महसूस हुई। किले के एक छोर पर केवड़े के झुरमुट हैं। तेज हवा चलने पर केवड़े की खुशबू चारों तरफ फैल जाती है जिससे वातावरण और भी रहस्यमय लगने लगता है।
लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो भानगढ़ के भुतहा होने के बारे में कहानियों पर यकीन नहीं करते। नजदीक के कस्बे गोला का बांस के किशन सिंह का अक्सर इस किले की ओर आना होता है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे इसमें कुछ भी रहस्यमय दिखाई नहीं देता। संरक्षित इमारतों में रात में घुसना आम तौर पर प्रतिबंधित ही होता है। किले में रात में घुसने पर पाबंदी तो लकड़बग्घों, सियारों और चोर - उचक्कों की वजह से लगाई गई है जो किसी को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।’’
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